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यद्वा॒जिनो॒ दाम॑ स॒न्दान॒मर्व॑तो॒ या शी॑र्ष॒ण्या᳖ रश॒ना रज्जु॑रस्य। यद्वा॑ घास्य॒ प्रभृ॑तमा॒स्ये᳖ तृण॒ꣳ सर्वा॒ ता ते॒ऽअपि॑ दे॒वेष्व॑स्तु ॥३१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। वा॒जिनः॑। दाम॑। स॒न्दान॒मिति॑ स॒म्ऽदान॑म्। अर्व॑तः। या। शी॒र्ष॒ण्या᳖। र॒श॒ना। रज्जुः॑। अ॒स्य॒। यत्। वा॒। घ॒। अ॒स्य॒। प्रभृ॑त॒मिति॒ प्रऽभृ॑तम्। आ॒स्ये᳖। तृण॑म्। सर्वा॑। ता। ते॒। अपि॑। दे॒वेषु॑। अ॒स्तु॒ ॥३१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:31


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन किनसे क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (वाजिनः) प्रशस्त वेगवाले (अस्य) इस (अर्वतः) बलवान् घोड़े का (यत्) जो (दाम) उदरबन्धन अर्थात् तङ्गी और (सन्दानम्) अगाड़ी-पछाड़ी पैर आदि में बाँधने की रस्सी वा (या) जो (शीर्षण्या) शिर में होनेवाली (रशना) मुँह में व्याप्त (रज्जुः) रस्सी मुहेरा आदि (यत्, वा) अथवा जो (अस्य) इस घोड़े के (आस्ये) मुख में (तृणम्) घास दूब आदि विशेष तृण (प्रभृतम्) उत्तमता से धरी हो (ता) वे (सर्वा) सब पदार्थ (ते) तेरे हों और यह उक्त समस्त वस्तु (घ) ही (देवेषु) विद्वानों में (अपि) भी (अस्तु) हो ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य घोड़ों को अच्छी शिक्षा कर उनके सब अङ्गों के बन्धन सुन्दर-सुन्दर तथा खाने-पीने के श्रेष्ठ पदार्थ और उत्तम-उत्तम औषध करते हैं, वे शत्रुओं को जीतना आदि काम सिद्ध कर सकते हैं ॥३१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के कैः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(यत्) (वाजिनः) प्रशस्तवेगवतः (दाम) उदरबन्धनम् (सन्दानम्) पादादिबन्धनादीनि (अर्वतः) बलिष्ठस्याश्वस्य (या) (शीर्षण्या) शिरसि भवा (रशना) व्याप्नुवती (रज्जुः) (अस्य) (यत्) (वा) (घ) एव (अस्य) (प्रभृतम्) प्रकर्षेण धृतम् (आस्ये) मुखे (तृणम्) घासविशेषम् (सर्वा) सर्वाणि (ता) तानि (ते) तव (अपि) (देवेषु) विद्वत्सु (अस्तु) ॥३१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! वाजिनोऽस्यार्वतो यद्दाम सन्दानं या शीर्षण्या रशना रज्जुर्यद्वाऽस्यास्ये तृणं प्रभृतं ता सर्वा ते सन्तु। एतत्सर्वं घ देवेष्वष्यस्तु ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - येऽश्वान् सुशिक्ष्य सर्वावयवबन्धनानि सुन्दराणि भक्ष्यं भोज्यं पेयं च श्रेष्ठमौषधमुत्तमं च कुर्वन्ति, ते विजयादीनि कार्याणि साद्धुं शक्नुवन्ति ॥३१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे घोड्यांना प्रशिक्षित करून खोगीर इत्यादी तयार करतात किंवा बांधतात, तसेच त्यांना चांगले पदार्थ खाऊ घालतात व त्यांच्या औषधांची व्यवस्था करतात ते शत्रूंना सहज जिंकू शकतात.